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Importance of education: शिक्षा की दशा, दिशा एवं महत्त्व

Importance of education: मानव जीवन बड़े सौभाग्य से प्राप्त होता है, लेकिन जीवन की सार्थकता हेतु मानव में कुछ विशेष गुण होना अनिवार्य है। उदाहरण के तौर पर अच्छा स्वास्थ्य, उत्तम शिक्षा, सद्व्यवहार, आदि। निस्संदेह, जीवन में इन सभी गुणों का विशेष महत्त्व है, परंतु इन सभी में शिक्षा अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षा मानव में सद्गुण, सद्व्यवहार, नैतिकता, संस्कार, सदाचार, उच्च आचरण एवं जीवन यापन करने हेतु संसाधन मुहैया करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

Courtesy: FaceBook

सदी के महान विचारक, राजनेता, विधिवेत्ता एवं मानव शास्त्री Dr. B R Ambedkar ने कहा था “शिक्षा वो शेरनी का दूध है – जो इसे पिएगा वह दहाड़ेगा”। यह पंक्ति importance of education को बखूबी उद्धृत करती है। बाबा साहेब ने तत्कालीन समय में जातिगत भेदभाव, छुआछूत और सामाजिक असमानता की प्रतिकूलताओं को धता बताते हुए शिक्षा प्राप्त की और महज़ इतना ही नहीं उच्च शिक्षा अर्जन के नए मानक स्थापित करते हुए उन्होंने 32 डिग्रियां प्राप्त कीं और एक मिसाल क़ायम की।

आज भी columbia university में बाबा साहेब की एक प्रतिमा लगी हुई है, जिस पर लिखा है, “Symbol of Knowledge”। यह सब संभव हो सका सिर्फ़ और सिर्फ़ शिक्षा की बदौलत। शिक्षा के बिना मनुष्य ऐसे है, जैसे पलाश का फूल। यह फूल देखने में अति मनमोहक लगता है परंतु सुगंध न होने के कारण इस फूल को कोई भी पसंद नहीं करता। दूसरी तरफ़ गुलाब के फूल को सभी पसंद करते हैं क्योंकि इनकी सुगंध ही इनके आकर्षण का कारण है। ठीक इसी तरह से मानव जीवन की सार्थकता सिद्ध करने में शिक्षा की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है।

शिक्षित व्यक्ति समाज का दर्पण होता है। सभी उससे प्रेरणा पाते हैं और उसका अनुसरण करते हैं एवं उच्च शिक्षा प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। आवश्यक नहीं कि हम केवल डिग्रियां प्राप्त करने हेतु शिक्षा ग्रहण करें, बल्कि स्वाध्याय से जो शिक्षा प्राप्त की जा सकती है, वह भी जीवन को निखारने एवं संवारने में अति महत्वपूर्ण योगदान देती है। आज शिक्षा प्राप्त करना महंगा होता जा रहा है। सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई का स्तर दिनोंदिन गिरता जा रहा है।

इससे बच्चों का जो विकास होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है। यदि बच्चे की शिक्षा का आधार ही कमजोर होगा तो उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। यह न केवल सरकारों की जिम्मेदारी है कि शिक्षा के स्तर में सुधार हेतु विशेष प्रयास किए जाएं बल्कि अभिभावकों को भी अपने बच्चों के शैक्षणिक सुधार हेतु प्रयासरत रहना चाहिए। अभिभावकों को यह समझना होगा कि शिक्षा बच्चों के जीवन का मूल आधार है और यदि आधार ही कमजोर होगा तो इमारत मजबूत नहीं हो सकती और वह कभी भी ढह सकती है।

Courtesy: FaceBook

अतः हर स्तर पर education system in India में सुधार और बेहतरी के प्रयास होते रहने चाहिए। साथ ही, हमें इस बात का भी विशेष ध्यान रखना होगा कि नए दौर की शिक्षा प्रणाली, कौशल विकास के साथ एकीकृत होकर चले तभी शैक्षणिक योग्यता रोज़गार में रुपांतरित हो सकेगी। अध्यापकों की भी शिक्षा के स्तर को सुधारने में मुख्य भूमिका होती है। अत: उन्हें चाहिए कि बच्चों को पूरी निष्ठा, लगन एवं मेहनत के साथ आगे बढ़ाने हेतु प्रयासरत रहें।

उन्हें यह समझना होगा कि अध्यापन का पेशा महज जीवन यापन हेतु नहीं है बल्कि उनकी व्यक्तिगत एवं सामाजिक जिम्मेदारी भी है कि वह बच्चों की शिक्षा के स्तर में सुधार कर सकें। इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का उन्हें पूर्ण निष्ठा के साथ निर्वहन करना होगा। बच्चे तो कच्ची मिट्टी के घड़े के समान होते हैं, उन्हें ढालना पड़ता है और सही स्वरूप देकर उन्हें मूल्यवान बनाना होता है।

आज उच्च शिक्षा महंगी होती जा रही है, इसी कारण से उच्च शिक्षा प्राप्त करना आम आदमी के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। अभिभावक अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाने में असमर्थ महसूस कर रहे हैं। अतः सरकार को चाहिए कि ऐसी नीतियां बनाए कि सभी बच्चे अपनी योग्यता अनुसार उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सक्षम हो सकें। उच्च शिक्षण संस्थानों जैसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान तथा अन्य उच्च संस्थानों में ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों का प्रवेश सुनिश्चित होना चाहिए।

चूँकि देश की लगभग 70% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और ग्रामीण युवाओं में पर्याप्त योग्यता भी है। उन्हें दरकार है तो सिर्फ़ उपयुक्त जानकारी और अवसर की, जिसके लिए वे सरकार से सहयोग की अपेक्षा रखते हैं। शिक्षा का विषय भारतीय संविधान में समवर्ती सूची में रखा गया है। इस पर केंद्र के साथ-साथ राज्य भी अपना कानून बना सकते हैं। मौजूदा समय में हमारे देश में विभिन्न राज्यों में अलग-अलग शिक्षा बोर्ड हैं।

ये बोर्ड अपने-अपने राज्य की education policy के आधार पर पाठ्यक्रम/ सिलेबस लागू करते हैं। राज्य स्तर पर स्थापित बोर्ड्स के पाठ्यक्रमों में भी एकरूपता लाने की आवश्यकता है। आज भारतवर्ष के कोने कोने में शिक्षण संस्थान खुले हुए हैं, परन्तु उनका शैक्षणिक स्तर उच्च कोटि का नहीं है। जिस कारण से बच्चे अच्छी शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। यहां यह कहना उचित होगा कि ऐसी शिक्षा का क्या फायदा, जो महज बेरोज़गारों की भीड़ पैदा करे।

सरकारों को चाहिए कि ऐसे शिक्षण संस्थानों हेतु उचित दिशा-निर्देश जारी करे ताकि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके। एक यह पहलू भी गौरतलब है कि बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार अपने शैक्षणिक करियर की दिशा तय करने का अवसर मिलना चाहिए। यदि कोई बच्चा खेल के क्षेत्र में जाना चाहता है तो वह उस क्षेत्र का चुनाव कर सकता है और यदि कोई बच्चा किसी तकनीकी शिक्षा को प्राप्त करना चाहता है तो उसको उस विषय का चुनाव करने की छूट है।

केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति में इस पहलू को ध्यान में रखा गया है। अब देखना होगा कि इस नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के दौरान इस पर किस हद तक अमल किया जाता है और साथ ही, राज्य सरकारें नई नीति के इस बिंदु को किस तरह से सार्थक बना पाती हैं।

कर्म चंद
लेखक भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय में निदेशक के पद पर कार्यरत हैं।

Prime Haryana
Author: Prime Haryana

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One Response

  1. आज देश की शिक्षा की गुणवत्ता समाप्त हो रही है। शिक्षा का राजनीति करण होता जा रहा है। वैज्ञानिक शिक्षा पद्धति को समाप्त किया जा रहा है। शिक्षा का भगवाकरण निजीकरण व्यवसायिक करण ने समस्या पैदा कर दी है। अंध विश्वास को विश्वास साबित करने के प्रयास हो रहे है। प्राथमिक,माध्यमिक उच्च माध्यमिक शिक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तन की अवश्यकता है। केजरीवाल मॉडल शिक्षा में क्रांतिकारी साबित हो सकता है। उक्त विचार एडवोकेट प्रहलाद राय व्यास पूर्व सदस्य स्थाई लोक अदालत भीलवाड़ा, वरिष्ठ विधि व्याख्याता ने शिक्षक दिवस पर व्यक्त किए।

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