राहुल गाँधी ने Bharat Jodo Yatra की, देश को समझा और यात्रा सम्पन होने के बाद अपने चुनावी अभियानों में एक प्रयोग करने की सोची। जैसा की कांग्रेस का डीएनए रहा है की फूट डालो राज करो, और इसी मूल मंत्र पर चलते हुए कांग्रेस के रणनीतिकारों ने जातीगत जनगणना करवाने का एक अभियान/ आंदोलन शुरू कर दिया। और बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े पेश भी कर दिए गए।
इन आंकड़ों के आधार पर कांग्रेस ने अपने सहयोगी दल आरजेडी और जनतादल के साथ मिलकर ये दिखने की कोशिस करी की ये तीनो दल कितने समानता में विश्वास करते हैं। राजेडी, जनता दल और कॉंग्रेस (जोकि अब लगभग पुरे देश में नकारी जा चुकी है) बताया की पुरे देश में बेरोजगारी है युवा परेशान हैं लेकिन अपने राज्य का हाल बड़ी चालाकी से छुपाने में लगे रहे। लेकिन ये पब्लिक है सब जानती है।
यहीं कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने मुस्लमान और ईसाइयों के बारे में कुछ भी नहीं कहा, की उनके धर्म में कितनी जातियां हैं, कितने फिरके हैं। उनका क्या हाल है, उनकी उनके धर्म में क्या सामाजिक स्थिति है क्या आर्थिक स्थिति है। अगर इन सब को इन चार राज्यों में हुए चुनाव से जोड़ कर देखा जाये तो देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज ने इस बात को पूरी तरह से नकार दिया है, की अब देश में बात जातियों की नहीं विकास की होगी।
अगर कांग्रेस को देश में हो रहा विकास नज़र नहीं आ रहा, अगर कांग्रेस को बीजेपी का मतदाता राक्षस नज़र आता है। तो ये कांग्रेस के रणनीतिकारों को सोचना होगा की वो अपनी पार्टी और देश को क्या दिशा देना चाहते हैं। जब तक कांग्रेस देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं को जातिजत जनगणना के आधार पर तोडना चाहेगी तो देश उनकी बातों में आने वाला नहीं है। अब समय आ गया है की अगड़े पिछड़े की राजनीती छोड़ के देश के मजबूत बनाना होगा।